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लेखनी प्रतियोगिता, कहानी - तुम मेरी हो -29-Dec-2022 ,विजय पोखरना "यस"

                                                                👰👰तुम मेरी हो👰👰

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          मेरे बचपन के दोस्त अखिल की शादी थी l शहर गए हुए मुझे करीब 10 साल हो गए थे l  बचपन का दोस्त था इसलिए उसका विशेष आग्रह था  कि मैं उसकी शादी में शरीक  होऊ। पिताजी की बदली के बाद हम शहर चले गए थे। दसवीं के बाद कि पढ़ाई मेरी वही हुई थी। डॉक्टरी भी मैंने वहीं से की थी। ईश्वर की कृपा से मैं हृदय रोग विशेषज्ञ हूं ।मेरी भी इच्छा थी कितने साल बाद गांव को पुनः देखु और अपने दोस्तों से  मिलूं  । 

निखिल ने शादी की व्यवस्था के कारण अपने छोटे भाई को मुझे लेने के लिए स्टेशन भेजा । घर पर देखा तो धूमधाम से शादी की तैयारी चल रही थी । आज मेरा दोस्त नई जिंदगी शुरू करने जा रहा था।  हल्दी मेहंदी सारी रस्में समय से पूरी हो रही थी ।  महिलाओं  द्वारा शादी के मंगल गीत गाए जा रहे थे।  सारा खुशी से भरा माहौल था।  बुआ जी मुझे देखकर बोलिए अरे मोहन आ गए बेटा तुम,  बड़े लेट आए हो। कितना प्यार झलक रहा था उनकी प्यारी डॉट में। इधर चले आओ बेटा चले आओ । थके हुए आए हो चलो पहले नाश्ता कर लो। मामाजी सारे व्यवस्था की देखभाल कर रहे थे । बुआ जी बड़े उत्साह में थे और सभी को जल्दी तैयार होने का निर्देश दे रहे थी। अचानक बुआ जी की जोर से आवाज सुनाई दी ,अरे राधा तू वहां क्या खड़ी है जल्दी तैयार हो । बारात का समय हो रहा है तू अभी तक तैयार नहीं हुई ।

अचानक उनकी आवाज से मेरा ध्यान उस तरफ आकृष्ट हुआ । देखा कि एक लड़की गुमसुम सी एक कोने में खड़ी है  । माथे पर कुछ सफेद बाल आ गए थे।  उसका ध्यान तैयारी की तरफ बिल्कुल नहीं था। अचानक बुआ जी की फिर आवाज सुनाई दी। राधा तू  सुन नहीं रही है क्या?  जल्दी तैयार हो, बारात रवाना होने का टाइम हो रहा है।  अनमने भाव से राधा ने बोला हां बुआ जी तैयार होती हूं। उसके आवाज में बड़ा ही दर्द छुपा था।  अनमने भाव से वह जाने की और अग्रसर हुई। दुख के मारे उसके मुंह से आवाज ही नहीं निकल रही थी।  उसकी आंखें किसी को तलाश रही थी। टकटकी लगाए दरवाजे की तरफ उसका ध्यान था। शायद वह किसी अजनबी की तलाश कर रही थी। खुशी के माहौल में भी उसके माथे पर दुख के भाव थे। उसकी आंखों में दुख की झील नजर आ रही थी। जाने के लिए उसके पांव ही नहीं उठ पा रहे थे।

मैंने उसकी तरफ देखा और कुछ चिरपरिचित सा चेहरा नजर आया। मैं अनायास पहचानने की कोशिश करने लगा। माथे पर जोर डालने पर ध्यान आया अरे यह तो पड़ोस वाले मास्टर जी की पुत्री राधा है । हां वही राधा है चुलबुली सी नटखट  सी सब को अनायास अपनी ओर खींचने वाली।  अरे क्या हो गया इसको, यह क्या हाल बना रखा है।  चेहरे की तो रौनक ही गायब है। बुआ जी से मैंने पूछ कर कंफर्म किया बुआ जी यह वही राधा है ना ..... हम साथ में पढ़ते थे । कितनी सुंदर लगती थी आज यह क्या हाल हो गया इसका। बुआ जी बोली हां बेटा यह वही राधा है, जो तेरे साथ बचपन में खेला करती थी। पिछले वर्ष उसके पिताजी का कोरोना में देहांत हो गया । माताजी तो पहले ही गुजर गई थी।  अब बेचारी ट्यूशन कर कर अपना पेट पाल रही है। मेरे दिमाग में अचानक बिजली कौधी। अरे इस राधा ने क्या हाल बना रक्खा हैं। यह सबकी प्रिय थी और आज क्या दुर्दशा हो गई । मैं हिम्मत कर राधा के पास गया।  बोला अरे राधा तुम तो सबसे तेज पढ़ने में  थी, आज यह तुमने अपनी क्या दशा बना रखी है । सबसे सुंदर थी तुम कक्षा के अंदर।  अचानक उसने अपनी नजरें ऊपर उठाई और मुझे ऊपर से नीचे तक निहारा। मुझे देखकर उसकी आंखों में अचानक तेज रोशनी प्रकट हुई। वह  विस्मय  भरे नैनो से मुझे देख रही थी ।  अचानक उसका पूरा शरीर सिहर सा उठा ।आंखों में एक तेज प्रकाश पुंज उभरा ।

वह बोली अरे मोहन तुम कब आए । उसके आवाज में एक जोश था । लगा उसको पूरा संसार दिख गया । वह अनवरत रूप से मुझे देखती रही । नैनो से आंसुओ कि अविरल धार बह रही थी,  मैं भी अनायास उसकी आंखों में टकटकी लगाकर देखता रहा ।  सबसे ज्यादा दुखी दिखने वाली एकदम कितनी प्रसन्न हो गई ।  हां राधा मैं मोहन ही हूं, शहर चला गया था पढ़ने के लिए ,डॉक्टरी कंप्लीट कर ली मैंने ।शहर के एक बड़े हॉस्पिटल  मैं हार्ट सर्जन हूं ।  शायद उसने मेरे शब्दों को नहीं सुना, क्योंकि उसका ध्यान केवल मुझे निहारने में ही था ।  अचानक मैंने उसे पूछ लिया राधा तुमने शादी नहीं की ।  वह बोली नहीं मोहन के बिना राधा शादी कैसे कर सकती हूं । अचानक उसके द्वारा दिए गए जवाब से मैं हतप्रभ हो गया ।  वह अपने मनमन्दिर में प्रेम का मेरे प्रति भाव छुपाए रखी थी ।  मन ही मन मुझे जो अपने जीवन का मोहन मान लिया था । उसने  मेरी तरफ उत्सुकता भरी नजरों से देखा और मुझसे प्रश्न किया ।  मैं तुम्हारा ही रास्ता खोज रही थी मोहन, बिना मोहन के राधा किसी और की नहीं हो सकती । मैंने मन में विचार किया देखो यह राधा इतने सालों से  बरबस इंतजार कर रही है । मेरे मन में बहुत अंतर्द्वंद चल रहा था।आखिरकार मेरे विचारों में निर्णायक मोड़ आया और मैंने मन में कहा कि राधा से बढ़कर और कोई नहीं हो सकता मोहन के जीवन में । अचानक मेरे मुंह से निकल गया हां राधा तुम मेरी हो, मैं तुम्हारे बिना अधूरा हूं, तुम मेरी हो तुम मेरी हो, मोहन की हो तुम,मोहन की ही हो ।

 बुआ जी पास में ही खड़ी थी इतनी देर से हमारी बातें सुन रही थी  और मेरे कान में बोली मोहन क्या राधा को तुम चाहते हो,  क्या तुम राधा के मोहन बन सकोगे । मेरी मौन स्वीकृति अपनी आंखों में बुआ जी ने पढ़ ली थी।  अचानक मेरे पिताजी से उन्होंने तुरंत फोन पर बात की और सारी बात उनको बताई।  पिताजी से फोन पर स्वीकृति ले उन्हें तुरंत आने हेतु न्योता दिया । और अचानक बुआ जी ने सबके सामने एक घोषणा की । आज इस मंडप में एक नहीं दो शादियां होगी। एक मेरे पुत्र अखिल  की और एक मेरी पुत्री राधा की । आखिरकार आज राधा को उसका मोहन मिल गया ।  आखिरकार मेरे अंतर्मन ने कहा हां राधा "तुम मेरी हो" तुम मेरे जीवन कि प्रेरणा हो । 

🙏विजय पोखरना "यस"
अजमेर

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4 Comments

Gunjan Kamal

03-Jan-2023 12:37 PM

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌🙏🏻

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Varsha_Upadhyay

30-Dec-2022 05:15 PM

बेहतरीन

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